पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०१

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(२७०) के सेनापतित्व मे लड़नेवाली साम्राज्य की सेना को इन लोगों ने ऐसा परास्त किया कि स्वयं उसके पुत्र स्कंदगुप्त के कथना- नुसार उनकी कुल-लक्ष्मी विचलित हो गई। यहाँ तक कि, जान पड़ता है कि, उस युद्ध में स्वयं कुमारगुप्त भी निहत हुआ था। दूसरे युद्ध में स्कंदगुप्त रात भर युद्धक्षेत्र मे रहा और खाली जमीन पर सोया। दूसरे दिन प्रात:काल जब फिर युद्ध होने लगा, तब स्कंदगुप्त ने अपने विपक्षियों को ऐसा समझौता करने के लिये विवश किया जिससे, शिलालेख में लिखे अनुसार, उसे राजकीय पदस्थल पर पैर रखने का अधिकार प्राप्त हुआ, अर्थात् वह राजपद का अधिकारी हुआ। परंतु उस शिलालेख में कहीं यह नहीं कहा गया है कि पुष्यमित्र लोग किसी प्रकार दबे अथवा उन्होंने अधीनता स्वीकृत की। इससे हम अधिक से अधिक यही कह सकते हैं कि इसमें पुष्यमित्र लोग युद्ध-क्षेत्र में परास्त हो गए थे; अथवा यदि हम उस स्थान का विचार करें जहाँ विजय-लेख मिला है ( गाजीपुर जिले का भीतरी नामक स्थान ) तो हम यह कह सकते हैं कि इस युद्ध में आक्रमणकारी पुष्यमित्र और अधिक आगे बढ़ने से रोक दिए - स्कंदगुप्त का भीतरीवाला शिलालेख-विचलितकुल-लक्ष्मी पं० विप्लुतां वंशलक्ष्मी पं० १३ प्रचलित वंशम् पं०१४ । । पितरि दिवमुपे [ते] आदि। देखो उक्त शिलालेख की बारहवीं और तेरहवीं पंक्तियाँ । फ्लीट ने इस पद का जो अनुवाद किया है, वह बहुत ही गड़बड़ और अस्पष्ट है और उससे मूल का ठीक ठीक भाव नहीं प्रकट होता।