पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०२

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( २७१ ) गए थे। यदि पुष्यमित्र लोग पाटलिपुत्र तक पहुंच गए होते, तो हिंदू भारत का उसके बाद का इतिहास कुछ और ही रूप धारण करता और पाटलिपुत्र मे उन लोगों के प्रजातंत्री या गण-राज्य की राजधानी स्थापित हो जाती। उस दशा में हमें एक इतना बड़ा विस्तृत गण राज्य दिखलाई पडताजो पहले के सभी गणों से बड़ा और विस्तृत होता। परंतु युद्ध का परि- याम कुछ और ही रूप मे हुआ। पुष्यमित्र लोग तो पीछे हट गए, पर गुप्तों पर फिर कभी राज-लक्ष्मी प्रसन्न नहीं हुई- उनका नष्ट वैभव फिर कभी उन्हें प्राप्त नहीं हुआ। पुष्यमित्रों के साथ युद्ध करने के उपरांत उनके बल का जो नाश और पतन होने लगा, वह फिर किसी प्रकार रोके न रुका गुप्तो के इतिहास मे एक विलक्षण भीषण बात देखने में आती है। वे एक प्रजातंत्र की सहायता से इतने अधिक बलवान् हुए; उन्होंने प्राचीन प्रजातंत्री का ही नाश किया, और अंत में एक प्रजातंत्र ने ही उन्हें जड़ से उखाड़ भी डाला। पुष्यमित्र लोग इस प्रकार ऐतिहासिक बदला चुकाने के उपरांत फिर रहस्यमय अतीत में विलीन हो गए। ६ १६७, पाँचवीं शताब्दी के अंत में हिंदु भारत से प्रजा- तंत्र अदृश्य हो गए। पुराने लिच्छवि लोग राजनीतिक क्षेत्र छोड़कर हट गए और उनकी एक अंत शाखा नेपाल में जा बसी। नए पुष्य- मित्र लोग हवा हो गए, और उसके बाद की शताब्दी में