पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०३

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(२७२) ही हिंदू शासन प्रणाली, इतिहास के रंगमंच पर से, अंतिम प्रस्थान कर गई। वैदिक काल के पूर्वजों के समय से जो कुछ अच्छी बातें चली आ रही थी, पहली ऋक की रचना के समय से अब तक जितनी उन्नति की गई थी, और जिन सब बातों के द्वारा राज-शासन मे जीवन का संचार हुआ था, वे सब बाते' इस देश को अंतिम अभिवादन करके चली गई। इसी प्रजातंत्रवाद ने पहले पहल महा-प्रस्थान का प्रारंभ किया था-इसी ने पहले पहल राजनीतिक निर्वाण का सुर अलापा था। उस अंतिम गीत का केवल एक ही चरण हमारी समझ मे प्राया-उस चरण मे सर्वनाश करनेवाली उस तलवार की प्रशंसा थी जो प्रकृति बर्बरों के हाथ में पकड़ा दिया करती है। पर उस गीत के अन्यान्य चरण हमारे लिये अभी तक पहेली के ही रूप में हैं। उस महाप्रस्थान के वास्तविक कारण भो उसी अंतिम गीत से स्पष्ट हो जाने चाहिए थे, पर वे समझ में ही न आए। ई० स० ५५० के बाद से हिंदू इतिहास विगलित होकर उज्ज्वल और प्रकाशमान जीवनियों के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इधर उधर बिखरे हुए फुटकर रत्न दिखलाई पड़ते हैं, जिन्हें एक में गूंथनेवाला राष्ट्रीय या सामाजिक जीवन का धागा नहीं रह गया है। हमे बड़े बड़े गुणवान् भी मिलते हैं और बड़े बड़े अपराधी भी। हमें हर्ष और शशांक मिलते हैं, यशोधर्मन्, कल्कि और शंकराचार्य मिलते हैं; परंतु ये लोग