पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०४

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(२७३ ) साधारण और सार्वजनिक तल से इतनी अधिक उँचाई पर हैं कि हम इनकी केवल प्रशंसा कर सकते हैं और इन्हें परम पूज्य मानकर इनका आदर मात्र कर सकते हैं। समाज में खतंत्रता का कहीं नाम नहीं रह गया है। इस पतन के कारण आंतरिक ही होने चाहिएं, जिनका अनुसंधान होना अभी तक बाकी ही है। केवल हूणों का आक्रमण ही इसका कारण नहीं ठहराया जा सकता-केवल उसी से इसका रहस्य नहीं खुल सकता। उस आक्रमण के उपरांत होनेवाले कई राजवंशों ने एक ही शताब्दी के अंदर हूणों को पूरी तरह से पद-दलित कर दिया था। परंतु फिर भी हम लोगों में पुराने जीवन का संचार नहीं हुआ। देखो बाण-कृत हर्ष की जीवनी । कल्कि को लोग उसके जीवन- काल में ही देवता मानने लगे थे। (इंडियन एन्टिक्वेरी १६१७. पृ० १४५) यदि कोई किसी की कोरी प्रशंसा ही करे और उसके दिख- लाए हुए मार्ग का अनुसरण न कर सके, तो उससे यही सूचित होगा कि प्रशंसित और प्रशंसक में बहुत बड़ा नैतिक अंतर है। हि-१८