पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०६

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( २७५ ) जैसा कि हम पहले बतला चुके हैं, महाभारत में भी यह कहा गया है कि कुछ ऐसे बड़े और उत्तरदायी नेता हुआ करते थे, जो छोटे और बड़े सभी प्रकार के सदस्यों को ठीक ढंग से रखते थे—उन्हें उच्छृखल या उदंड नहीं होने देते थे। ऐसे नेता लोग अपने आपको तथा अपने कृत्यों को सर्वप्रिय बनाया करते थे। महाभारत में इस बात का उल्लेख है कि श्रीकृष्ण ने अपने मित्र नारद से कहा था कि अपने संघ के कार्यकारी मंडल का काम चलाने मे मुझे कैसी कैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस पर नारद ने श्रीकृष्ण की इस बात की निंदा की थी कि जब सर्व-साधारण के सामने वाद- विवाद का अवसर प्राता है, तब तुम अपनी जबान को अपने वश मे नहीं रख सकते हो। नारद ने वृष्णियों के नेता श्रीकृष्ण को परामर्श दिया था कि यदि वाद-विवादमे लोग तुम पर किसी प्रकार का आक्रमण या आक्षेप करे, तो तुम उसे धैर्यपूर्वक सहन किया करो; और संघ मे एकता बनाए रखने के लिये तुम अपने व्यक्तित्व पर होनेवाले प्राक्षेपों का ध्यान न किया करो। इसी प्रकार वे लोग सदा युद्ध करने के लिये भी तैयार रहा करते थे। गण के नागरिक लोग सदा वीरता प्रदर्शित करने के प्राकांक्षी रहते थे और इसी में वे अपनी बहुत बड़ी प्रतिष्ठा समझते थे।

सर्वचित्तानुवर्तकः । अर्थशास्त्र ।

+ देखो परिशिष्ट क।