पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०७

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1 सफलता- (२७६ ) ६१६६. जैसा कि महाभारत में कहा गया है, गण में सब लोग समान समझे जाते थे। यह बात प्राकृतिक रूप से आवश्यक भी थी। जिस संस्था में सर्व- 'समानता का सिद्धांत साधारण का जितना ही अधिक हाथ होगा, उसमें समानता के सिद्धांत पर उतना ही ज्यादा जोर भी दिया जायगा। गयों में जो ये नैतिक गुण हुआ करते थे, उनके अतिरिक्त उनमें राज्य-संचालन के भी गुण होते थे। महाभारत में इस बात का प्रमाण मिलता है कि -पूर्ण विशेषतः आर्थिक बातों में उनका राज्य- राज्य-संचालन संचालन और भी सफलतापूर्ण हुआ करता था। उनके राज-कोष सदा भरे हुए रहा करते थे। $ १७०. गणों के राजनीतिक बल का एक बहुत बड़ा कारण यह था कि गण के सभी लोग सैनिक और योद्धा हुआ करते थे। उनका सारा समाज या समस्त नागरिक सैनिक होते थे। उनमें नागरिकों ही की सेना हुआ करती थी; और इसी लिये वह राजाओं की किराए पर भरती की हुई सेनाओं से कहीं अधिक श्रेष्ठ होती थी। और जब कुछ गण किसी पर आक्रमण करने के लिये अथवा किसी के आक्रमण से अपनी रक्षा करने के लिये अपना एक संघ बना लेते थे, तो उस दशा में, जैसा कि कौटिल्य ने कहा है, वे अजेय हो जाते थे। हिंदू प्रजातंत्रों या सैनिक व्यवस्था