पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०८

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(२७७) गणों में संघ बनाने की विशेष प्रवृत्ति हुआ करती थी संबंध में वैयाकरणों के षष्ठ-त्रिगर्त्त, क्षुद्रक-मालब संघ, विदेहों और लिच्छवियों का संघ, पाली त्रिपिटक का वज्जियों का संघ और अंधक-वृष्णि संघ उदाहरण स्वरूप हैं। महाभारत के कथनानुसार जो गण अपना संघ बना लेते थे, शत्रु के लिये उन पर विजय प्राप्त करना प्रायः असंभव सा हो जाता था। बुद्ध ने भी मगध के अमात्य से यही कहा था कि वजियों के संघ पर मगध के राजा विजय नहीं प्राप्त कर सकते। ६ १७१, हिंदू गणों के वैभव और संपन्नता की प्रशंसा भारतीय और विदेशी दोन प्रकार के लेखों आदि में पाई जाती है। यूनानियों का ध्यान उनकी संपन्नता शिल्प-कला की पर गया था, और महाभारत से भी इसका समर्थन होता है। यदि कोई नागरिक किसी कारण से राजनीतिक क्षेत्र का नेता नहीं हो सकता था, तो वह वणिकों या व्यापारियों की पंचायत या सभाका नेता होने की आकांक्षा किया करता था (६११७)। उनमे शाति की विद्या और युद्ध की विद्या, सुव्यवस्था या दांति और अध्यवसाय, शासन करने का अभ्यास और शासित होने का अभ्यास, विचार और कार्य, घर और राज्य, सभी बातें बराबर बराबर और साथ चलती थीं। इस प्रकार का जीवन निर्वाह करने का परिणाम यहो होता होगा कि सब लोग व्यक्तिश: और नागरिक दृष्टि से उच्च कोटि के कर्मशील और दक्ष व्यवस्था