पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३०९

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(२७८) हुआ करते होंगे। जिनमें इतने गुण और इतनी विशेषताएँ हों, यदि उनके संबंध में महाभारत में यह कहा गया हो कि लोग उनके साथ मित्रता करने और उन्हें अपने पक्ष में मिलाने के लिये उत्सुक रहा करते थे, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। और न इसी बात में किसी प्रकार का आश्चर्य हो सकता है कि वे अपने शत्रुओं की संख्या घटाने में ही आनंद अनुभव करते थे और अपनी ऐहिक संपन्नता का ध्यान रखते थे। इसका स्पष्टीकरण इस बात से हो जाता है कि उनकी शिक्षा और प्रतिभा एकांगी नहीं हुआ करती थी। वे केवल राज- नीतिक पशु ही नहीं थे। कौटिल्य ने उन्हें साथ ही साथ योद्धा भी बतलाया है और शिल्प-कला में कुशल भी। वे स्वयं अपने यहाँ के कानूनों के कारण ही शिल्प-कुशल और सैनिक होने के लिये बाध्य होते थे। वे व्यापार और कृषि पर सदा ध्यान रखते थे, जिससे वे स्वयं भी सम्पन्न रहते थे और उनका राजकोष भी भरा हुआ रहताथा । ६ १७२. यूनानियों के कथन से यह बात सिद्ध होती है कि ये लोग केवल युद्ध-क्षेत्र मे बहुत उच्च कोटि की वीरता और शौर्य दिखलानेवाले अच्छे योद्धा ही नहीं थे, नागरिक बल्कि अच्छे कृषक भी थे। जो हाथ सफ- लतापूर्वक तलवार चला सकते थे, वे खेती के औजार भी उतनी ही उत्तमता से काम में ला सकते थे। अर्थशास्त्र और बौद्ध लेखों से पता लगता है कि वे लोग कृषक भी थे और शिल्पी भी थे।