पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३११

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(२८०) लगता। इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि इस प्रकार के ग्रंथ किसी समय में रहे हो। महाभारत में गय और वृष्णि संघ के संबंध में जो अध्याय हैं, उनसे यही सूचित होता है कि पूर्व काल में इस प्रकार के ग्रंथ वर्तमान थे। इसी प्रकार कौटिल्य के अर्थ-शास्त्र में आया हुआ एक श्लोक भी यही प्रमाणित करता है, जो किसी दूसरे ग्रंथ से उधृत जान पड़ता है। उस अध्याय में केवल वही एक ऐसाश्लोक है जो गण के पक्ष की दृष्टि से लिखा गया है; और उस अध्याय के शेष समस्त अंश एकराज शासन-प्रणाली के पक्ष की दृष्टि से लिखे हुए हैं* | महाभारत में अराजक राज्य के संबंध में जो विवेचन है, उससे भी यही सिद्ध होता है कि उसका लेखक अराजक शासन-प्रणाली संबंधी किसी लिखित सिद्धांत अथवा सिद्धांतों के संग्रह से परिचित था । इन सब प्रमाणों से अप्रत्यक्ष रूप से यही प्रमाणित होता है कि बहुत अच्छी तरह विचार करने के उपरांत कुछ एसे दार्शनिक आधार निश्चित किए गए थे, जिन पर प्रजातंत्री या गण संस्थाओं की सृष्टि की गई थी। इसी आधार पर इस बात का भी बहुत कुछ पता लग जाता है कि जिन अनेक प्रजातंत्र शासन-प्रणालियां की हम विवेचना कर चुके हैं, उनके इतने अधिक प्रकार या विभेद किस प्रकार स्थापित हुए थे। प्रजातंत्रों या गणों के इतने अधिक भंदाप से आप नहीं हो गए थे ये सव समझ-बूझकर किए गए थे। अर्थशास्त्र पृ० ३७६