पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(२८१ ) कपिल और कठों के देश में, जिनके निवासी राज्य या शासन- प्रणाली की अपेक्षा कहीं अधिक कठिन विषय दर्शन की विवेचना किया करते थे, ऐसे लोगों की कमी नहीं रही होगी जो इस विषय पर दार्शनिक दृष्टि से विचार कर सकते हो। ६ १७५.आर्यदेव कृत चतुश्शतिका के आधार पर, जिसकी एक खंडित प्रति महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री को मिली थी, यह बात प्रमाणित होती है कि गण का निर्वाचित शासक गण का सेवक (गण-दास) समझा जाता था। महाभारत में कृष्ण संबंधी जो प्रकरण उद्धृत है, उससे गण-संबंधी सिद्धांत भी यही सिद्धांत प्रतिपादित होता है उन्होंने कहा था-"मुझे शासक का नाम धारण करके (ऐश्वर्य- वादेन) सेवक का कर्तव्य (दास्य) पालन करना पड़ता है।" $ १७६. जान पड़ता है कि कठों और सौभूतों में व्यक्ति अपने राज्य का केवल एक अंग माना जाता था। स्वयं उसकी कोई पृथक सत्ता नहीं होती थी। यही व्यक्तित्व कारण था कि व्यक्तियों के आगे जो संतान उत्पन्न होती थी, उस पर वे अपना पूरा पूरा अधिकार जतलाया करते थे। यह बात प्रत्यक्ष ही है कि और प्रजातंत्रों या गणों मे यह मत मान्य नहीं था। जैसा कि सिक्कों से प्रमाणित होता है, वे गण को केवल शासन करने- ... जरनल एशियाटिक सोसायटी ऑफ वंगाल, १६११. पृ० ४३१. देखो परिशिष्ट क।