पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३१६

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( २८५) प्राचीन काल में हुआ था; बल्कि जान पड़ता है कि हमारे यहाँ का यह समझौता समस्त संसार में सबसे अधिक प्राचीन था। यहाँ इस बात का भी स्मरण रखना चाहिए कि यदि इसके समस्त अंगों पर विचार किया जाय, तो यह सिद्धांत भी प्रजा- तंत्री ही है। इस सिद्धांत का साधारणत: शासकों पर लाभ- कारी प्रभाव डालने के लिये बहुत अधिक महत्व था। है।" इसमे आए हुए 'भृत्य' शब्द का अर्थ जानने के लिये एकराज शासन-प्रणालीवाले प्रकरण में उद्धृत किए हुए इसी प्रकार के और पद देखिए, जिनमे राजा के वेतन या वृत्ति आदि का उल्लेख है। यहाँ भृत्य शब्द का जो नर्थ है, वह वही है जो मनु ११. ६२ में आए हुए शब्द का है और जो मिताक्षरा मे दी हुई भृत्य शब्द की व्याख्या के भी अनुसार है। योग शब्द का अर्थ ागेवाली इस पंक्ति से स्पष्ट हो जाता है-तेषां किल्विषमदण्डकरा हरन्ति । क्योंकि इसमें उसके विपरीत भाववाला “अदण्डकरा" शब्द आया है, जिसका अर्थ है यदि राजा शासन करने में असमर्थ हो। योग के संबंध में अर्थशास्त्र का 'युक्त' शब्द भी ध्यान देने के योग्य है, जिसका अर्थ है 'शासक- मडल का सदस्य। ई० पू० ३०० से कौटिल्य ने भी इसे एक प्रसिद्ध सिद्धांत के रूप में उद्धृत किया है। निर्वाचन संबंधी वैदिक मन्त्रों में भी इस सिद्धांत का स्पष्ट अंकुर देखने में आता है। इस संबंध में ब्राह्मणो में जो उल्लेख पाए हैं, उनके लिये इस ग्रंथ के दूसरे भाग का राज्याभिषेक संबंधी पच्चीसवाँ प्रकरण देखो। बौद्धो के पुराने ग्रंथों में भी यही बात आई है। अगन्न सुत्त २१ (दीर्घ०)महावस्तु १. ३४७.८-शालि- क्षेत्रेषु षष्ठं शालिभाग ददाम । महता जनकायेन सम्मतो ति महा सम्मतो... राजा ति संज्ञा उदपासि।