पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३१७

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8 १७७. शासन-प्रणाली की सफलता की सब से अच्छी कसौटी यह है कि उसके द्वारा राज्य चिरस्थायी हो। भारत की प्रजातंत्र या -गण शासन-प्रणाली स्थायित्व राज्यों को चिरस्थायी बनाने में बहुत अधिक सफल प्रमाणित हुई थी। जैसा कि हम पहले बतला चुके हैं, हमारे यहाँ इस शासन-प्रणाली का प्रारंभ वैदिक युग के ठीक बाद ही हुआ था। यदि हम ऐतरेय ब्राह्मण के काल को अपना प्रारंभिक काल मानें, तो हम कह सकते हैं कि सात्वत् ओजों का अस्तित्व प्रायः एक हजार वर्ष तक था। यदि उत्तर मद्र और पाणिनि के मढ़ एक ही हों, तो उनका अस्तित्व , लगभग १३०० वर्षों तक था; और यदि वे एक न हों, तो उस दशा में उनका अस्तित्व प्रायः ८०० वर्षों तक सिद्ध होता है। क्षुद्रकों और मालवों ने ई० पू० ३२६ में सिकंदर से कहा था कि हम लोग बहुत दिनों से स्वतंत्र रहते आए हैं। मालव लोग राजपूताने में ई० पू० लगभग ३०० तक अवस्थित थे। इस प्रकार उन्होंने मानों लगभग एक हजार वर्ष स्वतंत्रतापूर्वक बिताए थे। यही बात यौधेयों के संबंध में भी है। लिच्छवियों के संबंध के लेख भी प्रायः एक हजार वर्ष तक के मिलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि जिन सिद्धांतों के अनुसार हिदू प्रजातंत्रों या गणों का संचालन होता था, वे सिद्धांत स्थायित्व की कसौटी पर पूरे उतरे थे।