पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(२८७ ) 8 १७८. इतना होने पर भी हिदु प्रजातंत्र या गण साधा- रणत: बहुत बड़े नहीं होते थे। यद्यपि उनमे से अनेक गण प्राचीन युरोप के प्रजातंत्रों की अपेक्षा हिंदू गणो की बड़े हो थे, तथापि मालगे, यौधेयों तथा दुर्बलताएँ इसी प्रकार के थोड़े से और गणों को छोड़कर आजकल के अमेरिका के संयुक्त राज्य, फ्रांस और चीन आदि के मुकाबले में बहुत ही छोटे थे । उनकी यही छोटाई इस राज्यतंत्र की बहुत बड़ी दुर्बलता थी। जो राष्ट्र और राज्य छोटे होते हैं, उनमें चाहे कितने ही अधिक गुण क्यों न हों, पर उनका अस्तित्व नहीं रहने पाता। बड़े बड़े राज्यों ने लोभ के वशीभूत होकर छोटे छोटे राज्यों को खा लिया। जो मालव और यौधेय बड़े बडे बलवान् साम्राज्यों और विजेताओं के बाद भी बच रहे थे, उनके राज्य बहुत बड़े बड़े थे। लिच्छवियों और मद्रों की भांति मालवों और यौधेयों ने भी अपने कानूनों और अधिकारो का वहाँ तक प्रचार किया होगा, जहाँ तक उनके राज्य का विस्तार था* | उनके विस्तार के कारण ही उनकी वह दशा नहीं होने पाई, जो उनके प्रारंभिक समकालीन छोटे छोटे राज्यो की हुई थी।

  • महाभाष्य २२६६. मे आया हुआ 'मालव' शब्द यही बात

सूचित करता है। देखो 8 ११८ में भक्ति-संबंधी विवेचन । अर्थशास्त्र में लिच्छिविक और मद्रक शब्द आए है; और समुद्रगुप्त ने मानक का उल्लेख किया है।