पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३१९

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(२८) 8 १७६. महाभारत में कहा गया है कि अराजक राज्यों पर सहज में विजय प्राप्त की जा सकती है। जब किसी बल- वान् शत्रु के साथ उनका मुकाबला होता है, तब वे उस लकड़ी की भॉति टूट जाते हैं जो मुकना जानती ही नहीं । यह बात सभी प्रजातंत्र राज्यों के संबंध में ठीक थो। जहाँ वे एक बार विजित हुए, वहाँ समाज के रूप में फिर उनका कोई अस्तित्व रह ही नहीं जाता था। उन समाजों का जीवन उनके राज्यों पर इतना अधिक निर्भर करता था कि जब तक राज्य रहता था, तभी तक उनका जीवन भी रहता था; और राज्य के उपरांत वह जीवन नष्ट हो जाता था। सिकंदर के मुकाबले में गण अच्छी तरह नहीं ठहर सके थे; इसी लिये चंद्रगुप्त के समय में उनकी निंदा होने लगी थी। यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब विदेशी आक्रमणकारियों से काम पड़ा था, तब गांधार का राजा अथवा प्रधान युवक पुरु सहायता के लिये मगध के साम्राज्य का मुखा- .. अथ चेदभिवत्त राज्यार्थी बलवत्तरः। अराजकाणि राष्ट्राणि हतवीराणि वा पुनः । प्रत्युद्गम्याभिपूज्यः स्यादेतदत्र सुमन्त्रितम् । महाभारत, शान्तिपर्ष, अ० ६६, श्लो० ६-७. (कुम्भकोणम्वाला संस्करण) मिलाओ- यत् स्वयं नमते दारु न तत्सन्नामयन्त्यपि । उक्त० १०. तस्माद्राजैव कर्तव्यः सततं भूतिमिच्छता । उक्त० १२.