पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३२५

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(२४) हैं, जिन्हें वे अगली बार कांगडू होने के लिये सब से अधिक उपयुक्त समझते हैं। इसके उपरांत उन चारों चुने हुए आद- मियों में से प्रत्येक के नाम पर तीन तीन पॉसे फेकते हैं; और उनमें से जिन दो के लिये सब से अधिक दॉव आते हैं, वही अगले तीन वर्षों के लिये कोंगडू चुने जाते हैं। यह रसम पत्थर की एक पुरानी वेदी के सामने होती है। यह वेदी ग्राम-देवता की समझी जाती है और इसके आगे कोंगडू पद की ध्वजा रखी जाती है। जो नए कोंगडू चुने जाते हैं, वे तुरंत ही अधिकारारूड़ नहीं हो जाते। उन्हें इसके ग्यारहवें महीने अधिकार प्राप्त होता है, जब कि एक और रसम होती है और याक नामक पशु पत्थर की उस वेदी के सामने बलि चढ़ाया जाता है। नए कोंगडू रक्त से भरी हुई खाल पर अपने हाथ रखते हैं और उस बलि चढ़ाए हुए याक की शपथ करके इस बात की प्रतिज्ञा करते हैं कि यदि स्वयं हमारे पुत्र और हमारे किसी शत्रु के मध्य में भी कोई झगड़ा होगा, तो उस दशा में भी हम न्याय ही करेंगे। कोंगडू कहते हैं कि हमें अपना अधिकार तिब्बती सरकार से नहीं मिलता, बल्कि हमारे ग्राम-देवता ही हमें यह अधिकार प्रदान करते हैं। वे यह भी कहते हैं कि हमें यह ध्वजा इसी ग्राम-देवता से प्राप्त हुई है और अधिकार भी इसी के द्वारा मिला है। मि० वॉल्श कहते हैं कि इस प्रकार यह शासन ईश्वर-प्रदत्त भी होता है और निर्वाचन-मूलक भो।