पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३२६

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> (२६५) ६१८४. मि. विन्सेंट स्मिथ ने इस संबंध में इंडियन एंटीक्वेरी में जो नोट प्रकाशित कराया था, उसमें उन्होंने अपनी सम्मति देते हुए लिखा था-"अब मुझे अालोचना एक ऐसी बात मालूम हुई है, जिससे मेरे मन मे यह विचार आता है कि यौधेयो की तरह गोत्रीय संस्था या शासन-प्रणाली का मूल तिब्बत से है। साथ ही प्राचीन भारत में जो इस प्रकार की गोत्रीय संस्थाएं प्रचलित थीं, उनका ठीक ठीक खरूप समझाने के लिये मि० वॉल्श का यह लेख ही यथेष्ट है क्योंकि इस समय ऐसा और कोई लेख नहीं मिलता, जो इस प्रकार की संस्थाओं की विस्तृत बाते' बतला सके ।” यहाँ इस बात का नाम के लिये भी कोई प्रमाण नहीं दिया गया है कि यौधेय लोग तिब्बती थे; और इसी लिये यह बात समझ में नहीं आती कि भारतीय विवरणों का जो स्थान खाली है, उसकी पूत्ति करने के लिये इस तिब्बती उदाहरण से क्यों काम लिया गया है। यदि सन् १६०६ में भारतीय शासन-प्रणालियों का कोई विस्तृत विवरण नहीं ज्ञात था, तो क्या यही उचित था कि उस रिक्त स्थान की पूर्ति तिब्बत से कर लो जाती ? पर अब जब कि ऐसे विव- रण मिल रहे हैं, यह बात मान ली जायगी कि चंबी तराई में कोंगडुओ के निर्वाचन के ग्यारहवें महीने जो रसम होती है, उसकी उस प्रजातंत्री राज्याभिषेक से कोई समानता नहीं है, जिसका उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में है। जो राज्य हिमालय के