पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३२७

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' (२६६) पास थे और जिनमें वैराज्य शासन-प्रणाली प्रचलित थी, वे भी इस चंबी तराई के उस स्थान से बहुत अधिक दूर हैं, जहाँ याक का बलिदान होता है। यौधेयों की पार्लिमेंट या गण, उनके मंत्रधरों और उनके निर्वाचित प्रधान में एक भी बात ऐसी नहीं है जो चंबी तराई की इस ईश्वर-दत्त शासन-प्रणाली से कुछ सी समानता रखती हो। ६ १८५. अब मूर्तियों को लीजिए। गणों की ओर से यह कभी नहीं कहा गया है कि साँची और भरहूत के स्मृति- चिह्न गणों की वास्तु-विद्या के आधार भरहूत और साँची पर बने हैं। अतः यदि सच पूछा जाय की मूर्तियाँ तो यह प्रश्न ही असंगत है। मुझे आर्शका यह होती है कि संभवतः मि० स्मिथ ने यह परि- थाम साँची और भरहूत के स्तंभों के लिए हुए फोटों के आधार पर निकाला है। उनमें की मि.स्मिथ का भ्रम नाकों की आजकल जो यह दशा देखने में आती है, उसका कारण यह है कि एक तो बहुत दिनों की होने के कारण वे यों ही बहुत घिस घिसा गई हैं; और दूसरे उन पर मूर्तियाँ तोड़नेवाले विदेशियों की कृपा हुई है। इसके अतिरिक्त उनमें की बहुत सी मूर्तियाँ ऐसी हैं, जो विदेशियों, बर्बरों तथा दुष्ट आत्माओं अथवा भूतों-प्रेतों के स्वरूप दिखलाने के लिये बनाई गई हैं; और उनकी प्राकृतियाँ जान बूझकर ऐसी रखी गई हैं कि वे हिंदुओं की प्राकृतियॉ न जान पड़ें। इस बात