पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३२८

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( २६७) का एक अच्छा उदाहरण यत्तों और यक्षिणियों की मूर्तियों में देखने में आता है, जिनकी संख्या बहुत अधिक है। सारे साहित्य में यक्ष और यक्षिणियाँ भारतीय पौराणिक कथाओं और कहानियों, कविताओं और नाटकों आदि का विषय रही हैं। इन सब का संबंध सदा हिमालय से रखा गया है; और इन्हें लोग केवल विदेशी ही नहीं मानते रहे हैं, बल्कि दुष्ट और उपद्रवी भी समझते रहे हैं। अब यदि हिमालय के लोग चिपटी नाकवाले बनाए जाय, तो यह मूर्ति बनानेवाले की तारीफ है। यहाँ उस मानव-विज्ञान की कोई खूबी नहीं है जो मूर्ति बनानेवाले और बनी हुई मूर्ति दोनों को एक मान लेता है जो शुभ गुण को भयंकर दुष्ट आत्मा समझ लेता है। पटने में एक स्त्री की जो आदम कद मूर्ति मिली है, यदि हम उसे लें, तो यह विषय अधिक स्पष्ट हो जाता है । भरहूत में यक्षिणियों की जो मूर्तियाँ हैं, वे भहो, भारी और बेहंगम हैं; पर अभी हाल मे पटने में जो मूर्ति मिली है, वह पूर्ण रूप से आर्य है। उसमें वही त्रिभंग है, जिसकी कवि लोग इतनी प्रशंसा किया करते हैं; बहुत सुंदर नाक है, छोटी ठोढ़ी है और प्रार्यों का सा सिर है। यह मूर्ति उसी तरह की है, जिसके संबंध में जातकों में लिखा है कि राज-प्रासादों में शोभा के लिये पुत्रवती स्त्रियों की मूर्तियां रखी जाती थी, जिन्हें

- जरनल बिहार एंड प्रोड़ीसा रिसर्च सोसायटी, पृ० १०३.

जातक ६, ४३२