पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३३१

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( ३००) मूल या आधार मंगोलिया से था। पर मुझे, अथवा जिसने महाभाज्य में यह पढ़ा है कि ब्राह्मण लोग अव तक सुंदर आँखोवाले तथा सुंदर वालोवाले (गौरः ईसवी श्रार भिक शताब्दियों के भारत- पिंगलः कपिलकेशः पाणिनि ५.१.११५. वासियों का मंगोलियन पर) होते हैं, अथवा जिसने गोपथ ब्राह्मण में यह पढ़ा है कि वैश्य लोग अब तक शुक्ल (गोरे रंग के ) होते हैं और जिसने धर्मशास्त्रों में पड़ा है कि शूद्र स्त्री अव तक इस देश का "कृष्ण सौंदर्य" है, उसे इस संबंध में किसी का "यह संभव है।* कहना अथवा तर्क वितर्क करना कभी संतुष्ट नहीं कर सकता । जैसा कि हम अभी वतला चुके हैं, गणों मे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी होते थे। यूनानियों ने उन लोगों को देखा था और अपनी दृष्टि से उन्होंने उन लोगों की शारीरिक गठन की प्रशंसा की थी। यदि वे लोग चिपटी नाकवाले होते, तो यूनानी कभी उनकी प्रशंसा न करते। चाहे मानव-विज्ञान हो और चाहे भारतीय पुरातत्व का ज्ञान (Indology) हो, तोला भर प्रमाण मनों सिद्धांतों की अपेक्षा अधिक महत्व रखता है 8 (८७. पूर्वी पुरातत्व के ज्ञाताओं का ध्यान सब से पहले लिच्छवियों की गण शासन-प्रणाली की ओर गया था, जिसे देख- कर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ था और उन्होंने उनके संबंध में अनेक प्रकार की कल्पनाएँ की थीं। विन्सेंट स्मिथ ने "लिच्छवियों इंडियन एंटीक्वेरी, १६०६. पृ० २६०. .