पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३०२) से वृक्षों के नीचे एक श्मशान या मृतक-स्थान देखा था और उस मृतक-स्थान के संबंध में ऋषियों ने उनसे कहा था- "उस स्थान पर लोगों के मृत शरीर पक्षियों के खाने के लिये फेंक दिए जाते हैं। और जैसा कि आप देख रहे हैं, वहीं पर लोग मृतकों की सफेद हड्डियाँ चुन चुनकर ढेर लगाते जाते हैं। वहाँ पर लोग मृतकों की दाह-क्रिया भी करते हैं और उनकी हड्डियों के भो ढेर लगाते हैं। वे वृक्षों में शव लटका भी देते हैं; और जो लोग निहत होते हैं अथवा अपने संबंधियों के द्वारा मार डाले जाते हैं, वे वहाँ गाड़ भी दिए जाते हैं, क्योंकि उनके संबंधियों को भय होता है कि कहीं ये लोग फिर से जीवित न हो जायें। और कुछ शव वहाँ पर यों ही जमीन पर इसलिये छोड़ दिए जाते हैं कि यदि संभव हो, तो वे फिर लौटकर अपने घर आ जायें"। यही वह वाक्य है (हमने इसे यहाँ ज्यों का त्यों अनुवाद करके उद्धृत कर दिया है) जिस पर मृतकों को यों ही जंगल में फेंक देनेवाला सिद्धांत निर्भर करता है और जिसके आधार पर मि० स्मिथ ने यह समझा है कि लिच्छवियों का मूल तिब्बती है। यह वाक्य चीन की एक ऐसी दंतकथा में का है, जो बुद्ध के समय के लग- भग एक हजार वर्ष बाद की है; और इसलिये बुद्ध के समय की बातें बतलाने के संबंध में ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में इसका

- बील कृत Romantic Legend of Sakya Budha,

पृ० १५६.