पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३३४

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(३०३) कोई मूल्य नहीं है। पर यह वाक्य जिस रूप में है, उस रूप में भी इसमें कोई दोष नही है। जो लोग संस्कृत साहित्य के नाटकों और सनातनी हिंदुओं में प्रचलित सामा- जिक तथा धार्मिक प्रथाओं से परिचित हैं, उनके लिये इस वाक्य का बिलकुल साधारण रूप में कुछ और ही अर्थ निकलता है। इसमें एक साधारण श्मशान का ही वर्णन है जैसा कि धर्मशास्त्र मे भी कहा गया है, कुछ अवस्थानों में शव जलाया नहीं जाता, बल्कि वह या तो गाड़ दिया जाता है और या यों ही फेंक दिया जाता है; अथवा मनु के कथना- नुसार "जंगल मे लकड़ी के कुंदे की तरह फेंक दिया जाता है।" (और हम कह सकते हैं कि इसके लिये लोगों को, जिनमे प्राच्य देशों के पुरातत्व की जानकारी रखनेवाले भो सम्मिलित हैं, यह कहने का साहस नहीं हो सकता कि मानव धर्मशान के रचयिता तिब्बती या पारसी थे।) संस्कृत नाटकों तथा कथानकों आदि में इस प्रकार की कथाएँ भरी पड़ी हैं कि लोगों को श्मशान में फॉसी दी जाती थी और लोग श्मशान- भूमि मे किसी वृक्ष में फॉसी लगाकर आत्म-हत्या कर लेते थे। अब तक यह प्रथा भी प्रचलित है कि लोग इस आशा से शव को यों ही फेक देते हैं कि कदाचित् यह जी उठे। १८८.अब मि० स्मिथ का यह कथन लीजिए कि दोनों की न्याय-प्रणाली में "बहुत अधिक समानता" है; और मि० स्मिथ • मनु, अध्याय ५. श्लोक ६६.