पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३३६

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1 > " " " 1 ( ३०५) में दोनों न्याय-प्रणालियों के संबंध में समस्त वाक्य उद्धृत कर देते हैं। अब चाहे इसे कानून जाननेवाले लोग देखें और अनुसार राजा निश्चय करता है कि इसका अपराध कितना बड़ा है; और तब उसके लिये उपयुक्त दंड की व्यवस्था करता है"। (जरनल एशियाटिक सोसायटी बंगाल, १८३८. १. ६६३-४.) इस पर मि० स्मिथ कहते हैं- "इस पेचीली प्रणाली में नीचे लिखी आठ अवस्थाएँ है- (१) अपराधी का पकड़ा जाना और शासकों के सामने उपस्थित किया जाना। (२) विनिच्चिय महामत्ता द्वारा होनेवाली जाँच । (३)बोहारिका (४) सुत्तधरा (५) अटठकुलका (६) सेनापति के सामने उपस्थित किया जाना । (७) उपराजा (८) राजा के द्वारा होनेवाला अंतिम निर्णय । इस संबंध में राजा दंड देने में लिखित नियम का पालन करने के लिये बाध्य होता है।" "बाबू शरत्चन्द्र दास ने (एशियाटिक सोसायटी बंगाल का कार्य- विवरण, १८६४. पृ० ५.) तिब्बतियों की न्याय प्रणाली की जो अवस्थाएँ बतलाई हैं, वे भी ठीक ऐसी ही हैं- (१) अभियुक्त व्यक्ति पकड़ा जाता है और हिरासत में भेजा जाता है। (२) उस पर दृष्टि रखी जाती है, उसके साथ कृपापूर्ण व्यवहार होता है और उससे मुलायमत से प्रश्न किए जाते है। (३) उससे मुलायमत से, पर बहुत ही सूक्ष्म विचार से प्रश्न किए जाते है, जिसे जमती कहते है, और उसके उत्तर लिख लिए जाते हैं । 1 "