पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३३८

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( ३०७) यही वे परिस्थितियाँ हैं जिन पर यदि विचार किया जाय, तो इस बात में किसी प्रकार का संदेह नहीं रह जाता कि लिच्छवि लोग राष्ट्रीय दृष्टि से भारतवासी लिच्छवियो का फौज- ही थे। विदेह और लिच्छवि दोनों दारी कानून एक ही राष्ट्रीय नाम "वृजि" से प्रसिद्ध थे। अर्थात् हम कह सकते हैं कि दोनों एक ही राष्ट्र या जाति की दो शाखाओं के रूप में थे। पर कोई समझदार यह कहने का साहस नही करेगा कि विदेह लोग तिब्बती थे। इस बात का लिखित प्रमाण मिलता है कि वैदिक विदेहों ने उत्तरी बिहार मे उपनिवेश स्थापित किया था | यदि विदेह लोग शुद्ध हिंदू थे और उपनिषद्, दर्शन तथा सनातनी ईश्वर- वाद के अच्छे ज्ञाता थे, तो उन्ही के राष्ट्र या जाति की दूसरी शाखा कभी बर्बर नही हो सकती। लिच्छवि लोग वैशाली में रहते थे। और जैसा कि हम अभी बतला चुके हैं, पुराणों मे विदेहों की भॉति लिच्छवियों का संबंध भी एक प्रसिद्ध आर्य वंश के साथ स्थापित किया गया है। वे अनभिषिक्त शासक नहीं थे; और "अनभिषिक्त' शब्द का प्रयोग हिंदू लेखक उन बर्बरों के लिये करते थे, जो बाहर से भारत मे आकर बस जाते थे। अंगुत्तर निकाय में लिच्छवियों के संबंध में भी अन्यान्य क्षत्रिय शासकों की भॉति "अभिषिक्त' शब्द का प्रयोग किया गया है। जातकों मे उस प्रसिद्ध झील

  • शतपथ ब्राह्मण, १.१.१.१०. नोट ।