पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३४

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समय समय पर हिदू भारत के अनेकानेक राजनीतिज्ञों और शासकों ने प्रस्तुत किया था। इस प्रकार के अवशिष्ट ग्रंथों में से एक ग्रंथ कौटिल्य का अर्थ-शास्त्र * पारिभाषिक साहित्य (ई०पू० ३००) है जिसमें पूर्व या पार- भिक मौर्यों के साम्राज्य-शासन-विधान आदि दिए हुए हैं। यह स्पष्ट है कि यह ग्रंथ प्राचीन प्राचार्यों के ग्रंथों आदि के आधार पर प्रस्तुत हुआ था। कौटिल्य ने अपने अर्थ- शास्त्र में ऐसे अठारह या उन्नीस आचार्यों के नाम दिए हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी प्राचार्य हैं जिनका उल्लेख अन्यान्य स्थानों में हुआ है । उदाहरण स्वरूप महाभारत को लीजिए जिसमें हिंदु राजनीति विज्ञान का संक्षिप्त

- सन् १९०६ में मैसूर राज्य की Bibliotheca Sans-

krita की सं० ३७ में प्रकाशित और श्रीयुक्त शाम शास्त्री द्वारा संपा- दित। सन् १९१५ में मैसूर मे प्रकाशित श्रीयुक्त शाम शास्त्री द्वारा अनुवादित कौटिल्य का अर्थ-शास्त्र संतोषजनक नहीं है। अनेक स्थानों में सूल संदिग्ध है। ट्रावनकोर सरकार द्वारा प्रकाशित कामदकीय नीतिसार की टीका में उद्धृत किए हुए अंशो से मिलान करने पर जान पड़ता है कि इस प्रकाशित मूल से उसमें अनेक स्थानों में बहुत अंतर है। डा. सोराबजी तारापुरवाला कृत Notes on the Adhya- kshaprachara ( १९१४) भी देखो। कौटिल्य ग्रंथकार का नाम नहीं बल्कि गोत्र-संज्ञा है। (J. B. 0. R. S. II. 80 और कामंदक पर शंकराचार्य I. 6.) शांतिपर्ष अध्याय ५८ और ५६ । यह संभव है कि गौरशिरा का समय कौटिल्य के समय के कुछ वाद हो। गौरशिरा के प्राचीन होने