पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३५

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( ४ ) इतिहास दिया है और जिसमें इन आचार्यों के अतिरिक्त एक और प्राचार्य-गौरशिरा का उल्लेख है। आश्व- लायन गृह्यसूत्र में एक और आचार्य का उल्लेख है जिसका नाम आदित्य दिया है। प्राचार्यों और लेखकों की इस विस्तृत सूची से पता चलता है कि कौटिल्य के समय से शता- ब्दियों पहले इस देश में राजनीति शास्त्र का अध्ययन होता था; और जिस समय कल्पसूत्रों की रचना समाप्त हो रही थी, उस समय तक यह एक प्रामाणिक विषय हो गया था। यदि हम यह मान लें कि ये सब प्राचार्य प्रारंभिक काल वीस वीस वर्ष के भी अंतर पर हुए थे, तो भी हमे यह मानना पड़ेगा कि हिंदू राजनीति शास्त्र-संबंधी साहित्य की रचना का आरभ ईसा से ६५० वर्ष पूर्व हुआ के संबंध में एक यह बात अवश्य है कि उसका उल्लेख प्राचीन लेखको के वर्ग से हुआ । इस लमय शांतिपर्व जिस रूप में पाया जाता है, वह रूप उसे कामंदकीय के उपरांत प्राप्त हुआ है; और जान पड़ता है कि काम दकीय के रचयिता से उस समय लोग परिचित थे। देखो अध्याय १२३ । इसके अतिरिक्त नीचे के 8 ३ (पृष्ठ १ ) की पहली पाद-टिप्पणी (1) भी देखो। - श्राश्वलायन गृह्यसूत्र ३, १२, १६ । । सब से पहले जिन धर्मसूत्रों की रचना हुई थी, उनसे भी पहले अर्थशास्त्र-संबंधी साहित्य विद्यमान था। देखो श्रापस्तं च धर्मसूत्र २, ५, १०, १४. राजा पुरोहित धर्मार्थकुशलम् । हरदत्त ने भी लिखा है-धर्मशास्त्र वर्थशास्त्र पु च कुशलम् पुरोहित'.........