पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३४१

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( ३१०) जातियों की उत्पत्ति के सिद्धांत के संबंध में भ्रम में डाल दिया है। स्वयं वैदिक साहित्य में यह बात मान्य की गई है कि सनाननी जाति में बहुत प्राचीन काल में यह प्रथा अथवा नियम प्रचलित था। इस संबंध में बौद्धों में जो प्रवाद प्रचलित है, वह केवल शाक्यों तक के लिये ही परिमित नहीं है। उसके अनुसार इक्ष्वाकु राजवंश में भी यह प्रथा प्रचलित थी, और इक्ष्वाकु लोग कोई नव आगंतुक नहीं थे। वे लोग कभी पतित नहीं हुए थे। वे लोग उतने ही प्राचीन हैं, जितने प्राचीन स्वयं वेद हैं। यदि इक्ष्वाकु लोग आर्य थे, तो उनके वंशज शाक्य लोग कभी अनार्य नहीं हो सकते । ६१६३. इस संबंध में यूनानियों की गवाही, जिन्होंने स्वयं बहुत से भारतीय प्रजातंत्रियों को देखा था, उतनी ही प्रामा- शिक है जितनी प्रामाणिक और कोई बात हो सकती है। पंजाब और सिंध के प्रजातंत्रियों के संबंध में वे कहते हैं कि वे लोग सुंदर और लंबे होते थे। यूनानी लोग, जिन्हें मैं इस संबंध में अच्छा निर्णायक समझता हूँ, हिमालय के मंगोलियनों की चिपटी नाक को कभी सुंदर न बतलाते ; और न हिमालय- वालों की प्राकृति को यूनानी लोग कभी भव्य ही कह सकते थे। उनका स्वयं वह नाम ही यह बात प्रमाणित करता है कि वह हिंदुओं की पूर्ण और पवित्र शुद्ध प्रार्य शाखा के संबंध में है। इन सब प्रजातंत्रियों को उन लोगों ने विशेष और स्पष्ट रूप से भारतीय कहा है।