पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३४२

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( ३११ ) ६१६४. इन प्रजातंत्रियों के नाम भी इनके हिंदू मूल के दूसरे प्रांतरिक प्रमाण हैं। कथई या कठ लोग वैदिक युग के हैं, और यजुर्वेद की फठ शाखा तथा नामो और सनातनी साहित्य की साक्षी कठोपनिषद् की उत्पत्ति उन्हीं लोगों से है। मद्रों का उल्लेख केवल वैदिक साहित्य मे ही नहीं है, बल्कि उनके यहाँ सनातनी शिक्षाओं का केंद्र था, जहाँ श्वेतकेतु सरीखे लोग गुरुकुल की शिक्षा समाप्त करने के उपरांत वैदिक यज्ञ आदि के संबंध में और अधिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये जाते थे। जैसा कि पहले बतलाया जा चुका है, यौधेयों और मद्रों के मूल के संबंध में एक निश्चित और प्रामाणिक इतिहास है। 'क्षत्रिया जाति के लोग भी विशुद्ध और उत्तम क्षत्रिय थे। वृष्णिा लोग केवला क्षत्रिय ही नहीं थे, बल्कि पवित्र क्षत्रिय थे, क्योंकि वे वैदिक युग के सात्वत् यदु थे। स्वयं आर्जुनायन और शालकायन आदि नाम ही इस बात का निश्चित प्रमाण हैं कि उनका मूल सनातनी है। इस संबंध में पाणिनि के जो सूत्र हैं, वही उन पर सना- तनी होने की मानों मोहर लगा देते हैं। ६१६५. इस प्रकार सनातनत्व ने मानों पहले ही से यह समझ लिया था कि आगे चलकर कदाचित् इस संबंध में मत- भेद या वादविवाद होगा; और इसी लिये उसने इन प्रजातंत्रों की सनातनी उत्पत्ति पर अपनी मोहर लगा दी थी। ऐतरेय ब्राह्मण मे उन वैदिक कृत्यों का वर्णन है, जिनके अनुसार प्रजा-