पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३४४

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परिशिष्ट क अंधक-वृष्णि संघ के संबंध में महाभारत का उल्लेख ६१६७. शांतिपर्व के ८१वें अध्याय में अंधक-वृष्णि संघ के कार्यों के संबंध में एक विवेचन है। यद्यपि वह कथन भीष्म पितामह के मुँह से कहलाया गया है, तथापि वह एक प्राचीन इतिहास है। उसमें कृष्ण ने अपने मित्र नारद को यह बत- लाया है कि वृष्णियों के नेता के रूप मे मुझे किन किन कठि- नाइयों का सामना करना पड़ता है; और नारद ने उन्हें यह बतलाया है कि इन कठिनाइयों को दूर करने का क्या उपाय है। यह विवेचन बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे नीचे लिखी बातों का पता चलता है- (क) उस संघ में दो राजनीतिक दल थे और उनमें से प्रत्येक दल राजनीतिक विषयों में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था। (ख) उनकी पार्लिमेंट या काउंसिल में खूब वाद विवाद हुआ करते थे, जिनमें कृष्ण पर आक्रमण किया जाता था; और वे उसके उत्तर में दूसरों पर आक्रमण या आक्षेप किया करते थे; क्योंकि नारद ने इस बात के लिये उनकी निंदा की है कि