पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 ( ३५४) तुम अच्छे ढंग से और जोरदार शब्दों में अपना पक्ष नहीं प्रतिपादित करते। (ग) जिस समय का यह इतिहास है, उस समय बभ्रु उग्रसेन और कृष्य निर्वाचित सभापति या प्रधान थे (घ) सब प्रजातंत्री नेता आपस में एक दूसरे के रिश्तेदार थे; और कृष्ण के संबंधियों का जितना अधिक प्रभाव था, उतना कृष्ण का नहीं था। जान पड़ता है कि पालिमेंटों में वृष्णियों का नेता आहुक और दूसरे पक्ष (अंधकों) का नेता अक्रूर था। [ सभापर्व के अनुसार इन दोनों ने अपने वंशों में एक राजनीतिक विवाह कर लिया था। हम यहाँ पर वह मूल कथोपकथन और उसका अनु- वाद देते हैं। भीष्म उवाच अत्राप्युदाहरंतीममितिहासं पुरातनम् । संवाद वासुदेवस्य महारदस्य च ॥ १ ॥ वासुदेव उवाच नासुहृत् परमं मन्त्रं नारदार्हति वेदितुम् । अपण्डितो वाऽपि सुहृत्पण्डितो वाप्यनात्मवान ॥ ३ ॥ - उग्रसेनो नामान्धकः । पाणिनि ४. १.११४. पर महाभाष्य; कीलहान, २. पृ० ११४. अध्याय १४. श्लोक ३३-३४.