पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३६

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था। समय-संबंधी इस निर्णय का समर्थन जातकों से भी होता है, जिनका रचना-काल बुद्ध से पूर्व (अर्थात् ईसा पूर्व ६०० से भी और पहले) माना जाता है। उन जातकों में यह बात स्वीकृत की गई है कि अर्थ अर्थात् अर्थशास्त्र का अध्य- यन कृतकार्य मंत्रियों के पथ-पदर्शन के लिये आवश्यक और एक मुख्य विज्ञान है। ६३ जो ग्रंथ राजनीतिक सिद्धांतों अथवा शासन-कार्यों से संबंध रखते थे, वे पार भ मे दंडनीति और अर्थ-शास्त्र कहलाते धे। दंडनीति का अर्थ है शासन- पारिभापिक शब्द संबंधी सिद्धांता और अर्थ-शास्त्र का अभिप्राय है जनपद-संबंधी शान। कौटिल्य ने अर्थ की व्याख्या इस प्रकार की है-"अर्थ का अभिप्राय है मनुष्यों की वस्तो; अर्थात वह प्रदेश जिसमें मनुष्य बसते हों। अर्थशान उस शान को कहते हैं जिसमें राज्य की प्राप्ति और उसके पालन के उपायों का वर्णन हो। फाबोल कृत जातक भाग २. ३०, ७४ । शांतिपर्व अध्याय ५८, श्लोक ७७-७८ । (कुंभकोणम् की छपी प्रति स्तोक ८०-८१ ।) + मनुष्याणां वृत्तिरर्थः सनुष्यवती भूमिरित्यर्थः तस्याः पृथिव्या लाभ- पालनोपायः शास्त्रमर्थशास्त्रमिति । अ० १५ पृ. ४२४ । यहाँ वृत्ति की व्याख्या या स्पष्टीकरण उसके उपरांत आनेवाले मनुष्यवती शब्द से हो जाता है। इसलिये उसे वृत्तिर्वर्तनम् (भावे क्तिन् ) मानना चाहिए। पालन का अर्थ केवल भरण-पोपण ही नहीं बल्कि वृद्धि भी है। इसका