पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३५१

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( ३२०) और उनके सब संबंधी या ज्ञाति के लोग धनप्राप्ति की प्राशा से सहसा प्रवृत्ति बदलने के कारण अथवा वीरता की ईर्ष्या से युक्त हो गए हैं; और इसी लिये उन्होंने जो राजनीतिक अधिकार ( ऐश्वर्य ) प्रतिपादित किया था, वह किसी दूसरे के हाथ में चला गया है। (१४-१५) जिस अधिकार ने जड़ पकड़ ली है और जो ज्ञाति शब्द की सहायता से और भी दृढ़ हो गया है, उसे वे लोग वमन किए हुए भोजन की भॉति फिर से वापस नहीं ले सकते। ज्ञाति या संबंधी में मतभेद या विरोध होने के भय से वे बभ्रु उग्रसेन से राज्य या शासनाधिकार वापस नहीं ले सकते। हे कृष्ण, विशेषतः तुम ( उनकी कुछ सहायता) नहीं कर सकते । (१६-१७) यदि कोई दुष्कर नियमविरुद्ध कार्य करके यह बात कर भी ली जाय, उग्रसेन को अधिकार-च्युत कर दिया जाय, उसे प्रधान पद से हटा दिया जाय, तो महा क्षय, व्यय अथवा विनाश तक हो जाने की आशंका है। (१८) अत: तुम ऐसे शस्त्र का व्यवहार करो जो लोहे का न हो, बल्कि मृदु हो और फिर भी जो सब के हृदय छेद सकता हो। उस शस्त्र को बार बार रगड़कर तेज करते हुए संबंधियों की जीभ काट दो। उनका बोलना बंद कर दो। (१६)

  • अथवा "वीभत्स भाषण" देखो पृ. ३१६ का नोट ।

प्रतापचंद्र राय के अनुवाद के आधार पर।