पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३५९

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( ३२८) (ख) न कहीं मेगास्थिनीज ने इसके नाम का उल्लेख किया है। (ग) न कहीं अंतिम लेखक मेगास्थिनीज के भारत- संबंधी विवरण से यह पता चलता है कि वह कौटिल्य का समकालीन था। (घ) पतंजलि ने अपने महाभाष्य मे मौर्यों और चंद्रगुप्त की सभा का तो उल्लेख किया है, पर कौटिल्य के संबंध में वे भी चुप है। (6) कौटिल्य केवल एक उपनाम है जिससे झुठाई और आडंबर या बनना सूचित होता है; और चंद्रगुप्त के सुप्रसिद्ध राजमंत्री ने कदाचित् ही इस प्रकार की झुठाई और आर्ड- बर रचा होगा। (च) न इस ग्रंथ के रंग ढंग से ही सूचित होता है कि यह किसी अच्छे राजनीतिज्ञ का लिखा हुआ है, क्योंकि पंडितों के रचे हुए सभी शास्त्रों की भॉति केवल रूढ़ि के अनु- सार किए हुए थोथे विभागों और बालकों के से किए हुए विभेदों से यह ग्रंथ भरा हुआ है। जोली का निकाला हुआ परिणाम-"इसलिये इस ग्रंथ का वास्तविक रचयिता कोई कुशल राज्य-संचालक नही था, बल्कि केवल साधारण सिद्धांतों का ज्ञाता था और वह कदाचित किसी मध्यम श्रेणी के राज्य का कोई अधिकारी था।" (पृ० ४७.) "लोग जो इसे कौटिल्य या चाणक्य का रचा हुआ ग्रंथ