पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३६०

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( ३२६) मानते हैं, उसका कारण केवल यही है कि उस प्रसिद्ध राजमंत्री के संबंध में बहुत सी कल्पित कथाएँ प्रचलित थी, जो राजनीति- शास्त्र का पूर्ण पंडित और निर्मायक तथा नीति-संबंधी प्रचलित बुद्धिमत्ता का आविष्का माना जाता था।" (पृ० ४७.) तर्क (क) का खंडन निकाले हुए परिणाम के पिछले अंश से हो जाता है, जिसमे यह स्वीकृत किया गया है कि परंपरा- गत कथाओं और लेखों आदि के आधार पर कौटिल्य आवि- कर्ता माना जाता था, आदि आदि। साहित्य में इस प्रकार की परंपरागत कथाएँ आदि मिलती हैं। उदाहरणार्थ नंदिसूत्र में डा० शाम शास्त्री द्वारा उद्धृत 'कोडिल्लियं मिथ्या शास्त्र' अर्थ- शास्त्र ( १८०६), उपोद्घात ६. और संस्कृत के पंचतंत्र, कामन्दक, दंडिन् ('पूज्य आचार्य' ) मेधातिथि आदि । तर्क (ख) का सीधा सा उत्तर यह है कि मेगास्थिनीज का लिखा हुआ ग्रंथ कहा है ? पहले उस ग्रंथ का पता लगाइए; क्योंकि जो ग्रंथ अभी तक मिला ही नहीं है, उसके आधार पर हम कोई सिद्धांत स्थिर नहीं कर सकते । तर्क (ग) केवल इस कल्पित सिद्धांत के आधार पर खड़ा किया गया है कि कौटिल्य किसी बड़े साम्राज्य से परिचित ही नहीं था, बल्कि उसका संबंध किसी छोटे से राज्य से था; क्योंकि उसने पड़ोसियों के संबंध में मंडल या प्रकृति-वाला सिद्धांत दिया है; और उसने गणों के अस्तित्व और उनके प्रति काम में लाई जानेवाली नीति का उल्लेख किया है । इस कल्पना का