पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३७

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उष्ण ने अपने ग्रंथ का नाम दंडनीति और बृहस्पति ने अपने ग्रंथ का नाम अर्थशास्त्र रखा था और ये दोनों ग्रंथ प्राचीन काल में बहुत प्रसिद्ध थे। महाभारत में दंडनीति नामक एक ग्रंथ का, बल्कि या कहना चाहिए कि विश्वकोप का, उल्लेख है जिसका रचयिता प्रजापति कहा गया है। यह विषय राज- शास्त्र+अथवा राजधर्म भी कहलाता है। महाभारत में राज- महाभारत के शांतिपर्व मे इस विषय का नीतिक ग्रंथ ई० पू० ४०० से ई०प०५०० तक विवेचन राजधर्म के ही नाम से किया गया है। महाभारत की आधारभूत- सामग्री प्रायः प्राचीन ही है; परंतु ईसवी पाँचवीं शताब्दी तक उसमें वृद्धि होती गई थी; फिर भी उसका बहुत कुछ रूप ई० पू० १५० मे ही निश्चित हो गया था । समर्थन दंढनीति शब्द की उस व्याख्या से भी हो जाता है जो कौटिल्य ने की है ( १, ४, पृ० ६) और जो इस प्रकार है-दंडनीतिः अलब्ध- लाभार्था, लब्धपरिरक्षणी, रक्षितविवर्धनी श्रादि आदि। और नीतिवा- क्यामृत २ के इस वाक्य से इसका समर्थन होता है। अलब्धलाभो लब्धपरिरक्षणं रक्षितविवर्धनम् चेत्यर्थानुबंधः । नीतिवाक्यामृत २ । मुद्राराक्षस, वात्स्यायन कामसूत्र, १॥ 1 शांतिपर्व प्र०५६ (बंगाल)(५८ कुंभकोणम्) कामशास्त्र, १ । + शांतिपर्व अ०५८ (बंगाल) (२७ कुंभकोणम्) । ४ शांतिपर्व का समय जानने के लिये मेरा "टैगोर लेक्चर्स" में का पहला व्याख्यान देखो। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जो अंधकार ऐति- हानिक व्यक्ति माने गए हैं, वे शांतिपर्व में देवी विभूति और पौराणिक