पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३६१

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( ३३० ) वास्तविक घटना से खंडन हो जाता है। कौटिल्य कहता है कि चक्रवर्ति क्षेत्र* हिमालय पर्वत और समुद्र के मध्य में है और वह सीधी रेखा में (जिस प्रकार कौवा उड़ता है) हजार योजन है। किसी ऐसे राज्य की कदाचित् सहज मे कल्पना ही नहीं हो सकती जिसके पड़ोसी न हो, और किसी राजनीतिज्ञ का साम्राज्य चाहे कितना बड़ा क्यों न हो, उसे अपने पड़ोसियों के संबंध की नीति स्थिर करनी ही पड़ेगी। इसके अतिरिक्त लोग यह भी जानते हैं कि दक्षिण में अनेक पड़ोसी थे जिन पर दूसरे शासन में अर्थात् बिंदुसार के समय में विजय प्राप्त की गई थी। जब चंद्रगुप्त ने यूनानियों से उत्तर-पश्चिमी प्रांत प्राप्त किए थे, तब उसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि उसने वे प्रदेश बिना उन शासकों के लिए थे जो साधारणतः प्रजातंत्री थे और जिनका सिकंदर की शासन-व्यवस्था में अस्तित्व था। संघ-वृत्त (ग्रंथ) में ऐसे गणों के प्रति नीति निर्धारित की गई है जिनके संबंध में यह मान लिया गया है कि वे महा- राज के प्रभाव के अंतर्गत थे, चाहे वे (१) पंजाब, (२) अफगा- निस्तान (काम्बोज),(३) पश्चिमी भारत या (४) उत्तरी बिहार के हों। उनमें ऐसे दल भी थे जो महाराज के पक्ष में थे और ऐसे दल भी थे जो उनके विरोधी थे (अर्थशास्त्र)। उसे

  • ६.१. पृ० ३३८.

शंकराचार्य का पाठ, कामंदकीय नीतिसार १. ३६.

  • जरनल श्राफ दी बिहार एंड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, २. ८१.