पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३६२

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( ३३१ ) उनमे के नेताओं मे भेद भाव उत्पन्न करना पड़ता था, उनमें से कुछ के प्रति कृपापूर्ण व्यवहार करना पड़ता था और कुछ को अधिकारारूढ़ करना पड़ता था (पृ० ३७६.)। सब लोग यह बात' जानते हैं कि एक प्रारंभिक मौर्य काल को छोड़कर और किसी काल मे अफगानिस्तान, पंजाब, पश्चिमी भारत और उत्तरी बिहार सब एक साथ और एक ही समय में किसी एक भारतीय राजा के अधिकार-क्षेत्र में नहीं थे। कौटिल्य छोटे छोटे राजाओं का अस्तित्व सहज मे सहन नहीं कर सकता था; और यह एक ऐसी बात है जो केवल मौर्य काल के संबंध में ही ठीक ठीक घट सकती है। शुंग काल में साम्राज्य की नीति बदल गई थी। उसने प्रायः ऐसा रूप धारण कर लिया था जो साधारणत: बहुत से मांडलिक राजाओं के लिये ही उपयुक्त होता है ( देखो शिलालेखों में उल्लिखित स्थानिक राजाओं के नाम )। अब तर्क (घ) लीजिए। यह बात ठीक है कि पतजलि ने कौटिल्य का कोई उल्लेख नही किया है। पर डा० जोली को पाणिनि का कोई ऐसा सूत्र या कात्यायन का कोई वार्तिक या पतंजलि के भाष्य का कोई ऐसा अंश दिखलाना चाहिए था, जिसमे कौटिल्य का उल्लेख करना आवश्यक होता। यदि पतं- जलि मे बिदुसार, अशोक, राधागुप्त या युद्ध का कोई उल्लेख नहीं है, तो क्या इससे यह सिद्धांत स्थिर कर लिया जाय कि ये लोग हुए ही नहीं थे ? पतंजलि कोई इतिहास लिखने नहीं बैठा था।