पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३६४

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( ३३३) का प्रोफेसर हो और चाहे राजनीति पर व्याख्यान देनेवाला राजनीतिज्ञ हो, उस शैली को छोड़ नहीं सकता। हमारी समझ मे तो अर्थशास्त्र में दिए हुए विवरण और सिद्धांत ऐसे ही हैं जिन्हें केवल थोथे सिद्धांतों का ज्ञाता और उपेक्ष्य पंडित कभी लिख नहीं सकता। वास्तव में यह बात स्वयं जोली ने भी मान ली है, क्योंकि एक स्थान पर उन्होंने कहा है कि इस ग्रंथ का रचयिता संभवतः राज्य का कोई ऐसा अधिकारी था जो शासन-कार्य से परिचित था। स्वयं यह स्वीकृति ही पंडित और कोरे सिद्धांतवादी-वाले कथन का खंडन करती है। जोली ने आरंभ में ही लिखा है-"अर्थशास्त्र में राज्य की भीतरी और बाहरी नीति का विवेचन है और उसे हम भारत का प्राचीन गजेटियर मान सकते हैं। उसे राजनीति और उसके विज्ञान का संग्रह कह सकते हैं। (पृ० १-२.)। और आगे चलकर उन्होंने कहा है-"साधारणतः अर्थशास्त्र की प्रवृत्ति पूर्ण रूप से वास्त- विकता और सांसारिकता की ओर है' (पृ०३)। अब डा० जोली पर यह बात प्रमाणित करने का बहुत भारी उत्तरदायित्व है कि इस ग्रंथ का रचयिता वह व्यक्ति नहीं है जिसका नाम लिया जाता है और जो शंकराचार्य, बाण, दंडी, कामंदक तथा अन्य अनेक व्यक्तियों के द्वारा इसका रचयिता माना जाता है, वल्कि कोई दूसरा ही व्यक्ति है। केवल कह देने से ही कोई चीज जाली नहीं हो सकती। उसका जाली होना प्रमाणित होना चाहिए; और यह बात उसे प्रमाणित करनी चाहिए जो उसे