पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३६५

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( ३३४) जालो वतलाता हो । अब पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि डा. जोली ने अपने ऊपर का यह भार कहाँ तक उतारा है, अपने उत्तरदायित्व से वे कहाँ तक मुक्त हुए हैं। हमारी सम्मति मे तो वे अपने ऊपर से यह भार नहीं उतार सके हैं। उन्हें जो कुछ प्रमाणित करना चाहिए था, वह वे प्रमाणित नहीं कर सके हैं। (२) रचना-काल अव हमे यह देखना चाहिए कि इसका रचना काल क्या है। डा० जोली का यह कथन बहुत ठीक है कि इस समस्त ग्रंश में आदि से अंत तक रचना और विषय-योजना का ऐसा उत्तम संकलन है जो जल्दी और कहाँ देखने में नहीं आता (पृ. ५)। और उनके इस कथन से सब लोगों को सहमत होना पड़ता है। इसके प्रारंभ में तो विपय-सूची है और अंत में ग्रंथ की रचनाप्रणाली के संबंध में टिप्पणियाँ हैं जिनके कारण सारे ग्रंथ में एकता और सामंजस्य आ जाता है; और सारे अंध में अन्यान्य प्रकरणों तथा आलोच्य विषयों का उल्लेख है, जिसके कारण इस बात में किसी प्रकार का संदेह नहीं रह जाता कि यह समस्त ग्रंथ एक ही रचयिता या लेखक का लिखा हुआ है। डा. जोली जब यह कहते हैं कि जिस रूप में आजकल यह ग्रंथ हम लोगों को प्राप्त है (और हम अपनी ओर से इतना और भी कह सकते हैं कि कुछ दोषपूर्ण पाठों तथा प्रतिलिपि करनेवालों के प्रमादों के कारण होनेवाली