पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३३६ ) (२) अपने धर्मों या कानूनों के संबंध में कौटिल्य और याज्ञवल्क्य एक दूसरे से सम्मत हैं, उनमें किसी प्रकार का मत- भेद नहीं है। इसलिये यही कहना पड़ता है कि याज्ञवल्क्य की कही हुई बातों को कौटिल्य ने सूत्रों का रूप दे दिया है (पृ० १७.)। और याज्ञवल्क्य का समय भी वही अर्थात् ई० तीसरी शताब्दी है (पृ० ४७.)। (३) महाभाष्य में अर्थशास्त्र का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। (४) अर्थशास्त्र में जीवन-यापन की उन्नत अवस्थाओं का विस्तृत विवरण दिया है; और उसकी तुलना में महाभारत का राजधर्म तथा धर्मसूत्र एक प्रकार से बहुत ही प्रारंभिक अवस्था के हैं (पृ० ३०.)। (५) अर्थशास्त्र का रचयिता पुराणों से परिचित था। (६) कामशास्त्र के एक प्रकरण वैषिक का कौटिल्य ने उल्लेख किया है (पृ० ३२.)। (७) अर्थशास्त्र का रचयिता संस्कृत व्याकरण के पारि- भाषिक शब्द जानता था और वह अष्टाध्यायी से परिचित था (पृ० ३२.)। (८)अर्थशास्त्र का रचयिता फलित ज्योतिष तथा भविष्य- कथन आदि से परिचित था और अर्थशास्त्र में दो ग्रहों के नाम पाए हैं। (६) वह शुल्बधातुशास्त्र (ताँबे के संबंध के धातुविज्ञान) नामक एक ग्रंथ से परिचित था (पृ० ३३.)।