पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८

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(6) जान पड़ता है कि प्राचीन शब्द"अर्थ और "दंड" का स्थान आगे चलकर नीति और नय शब्दों ने ले लिया। कामदक ने अपनी पद्यमय रचना का नाम नीति- ई० चौथी और सार रखा है। जो ग्रंथ शुक्र का बनाया पांचवीं शताब्दी के ग्रंथ हुआ माना जाता है और जो अपने वर्त- मान रूप में एक प्रसिद्ध प्राचीन ग्रंथ का दोहराया हुआ संस्क- रण है और जो कदाचित् उष्ण की प्राचीन दंडनीति के आधार पर बना है, उसका नाम भी नीतिसार-शुक्र नीतिसार है । पंचतंत्र नामक ग्रंथ मे, जिसमे राजकुमारों तथा भावी राजनीतिज्ञों के लिये छोटी छोटी कहानियों में राजनीति के सिद्धांत बतलाए गए हैं, इस साहित्य का नाम 'नय-शास्त्र' दिया गया है।। माने गए हैं। उसमे यह भी कहा गया है कि शक और तोखरी लोग हिंदू राजानों के अधीन हुए थे (अ० ६५) । पर यह घटना ईसवी पांचवी शताब्दी के प्रारंभ की है। यहीं इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कामंदक के समय में महपियों का बनाया हुआ राजनीति विज्ञान संबंधी जो ग्रंथ प्रचलित था (८, २३) वह शांतिपर्व के समाप्त होने के समय अप्राप्य हो गया था। (अ० ३४३, ५२ कुंभकोणम् ।) मध्य युग तथा उसके उपरांत के धर्म-शास्त्र के टीकाकारों ने इस ग्रंथ का उल्लेख किया है और उसमें से अनेक अंश उद्धृत किए हैं। इस समय जो संस्करण प्रचलित है, उसमें मुझे वे उद्धरण नहीं मिले। इससे जान पड़ता है कि सत्रहवीं शताब्दी के लगभग अवश्य ही यह ग्रंध फिर से दोहराया गया होगा। इसमें अधिकांश में प्राचीन सिद्धांत ही दिए गए निय-शास्त्र-कर्तृभ्यः। पंचतंत्र अध्याय १ । ।