पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३७३

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( ३४२) पूर्ण कार्य है; और याज्ञवल्क्य ने यही काम किया था। इसके विपरीत आचरण करने की कल्पना के पक्ष में कोई अच्छा कारण या प्रमाण नहीं दिया गया है। याज्ञवल्क्य का समय ईसवी तीसरी शताब्दी माना जाता है; और उस समय तक युक्त शब्द का पारिभाषिक अर्थ इतना लुप्त हो गया था कि एक धर्मशाख का रचयिता भी उसे नहीं समझ सका था। इससे यह बात सिद्ध होती है कि अर्थ- शास्त्र का समय ईसवी दूसरी या तीसरी शताब्दी से कुछ शताब्दियों पूर्व होना चाहिए। (३) इससे पहले कि हम महाभाष्य के मौन के आधार पर कोई सिद्धांत स्थिर करे, यह दिखलाए जाने की आवश्यकता है कि अमुक अवसर पर अर्थशास्त्र का उल्लेख होना चाहिए था। बहुत से वैदिक ग्रंथ ऐसे हैं जिनका पतंजलि ने कोई उल्लेख नहीं किया है। परंतु केवल इसी कारण कोई यह नहीं कह सकता कि वे ग्रंथ पतंजलि से पहले थे ही नहीं । पतंजलि साहित्य का कोई इतिहास लिखने नहीं बैठे थे। (४) धर्म-सूत्रों मे केवल धर्म या कानून का विवेचन है, परंतु अर्थशास्त्र में अर्थ संबंधी सिद्धांतों और नियमों का उल्लेख है। धर्म-सूत्रो का विषय राजनीति-विज्ञान नहीं है, बल्कि धर्म या कानून है। अर्थशास्त्र का मुख्य विषय ही राजनीति है, और धर्म-सूत्रों में उसका उल्लेख प्रासंगिक मात्र है; इसलिये काल-निर्णय की दृष्टि से इन दोनों की कोई तुलना हो ही