पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३७४

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( ३४३) नहीं सकती। हमे यह कहने में बहुत संकोच होता है कि महाभारत में राजधर्म का जो स्वरूप दिया गया है, वह बिल- कुल अपनी प्रारंभिक या गर्भावस्था का है। उसके जिस अंश मे राजधर्म का सिद्धांत रूप में विवेचन किया गया है, वह अंश अर्थशास्त्र की अपेक्षा अधिक विकसित या उन्नत है। और फिर यदि किसी लेखक का लेख किसी दूसरे लेखक के लेख की अपेक्षा कम अच्छा या घटकर है, तो उसके कारण उन दोनों के काल में किसी प्रकार का विपर्यय नहीं हो सकता। डा० जोली के लेक्चरो के बाद के कुछ टैगोर लेक्चर बहुत घटकर हैं, पर केवल इसी कारण यह नहीं कहा जा सकता कि डा० जोली के लेक्चरो की अपेक्षा टैगोर लेक्चर पहले के या पुराने हैं। (५) सबसे प्राचीन धर्म-सूत्र के कर्ता को भी पुराणों का ज्ञान अथवा परिचय था। आपस्तम्ब (२. २४. ६. पृ०६९.) में भविष्य पुराण का उल्लेख है और फिर २. ६. २३. ३. में 'पुराण' शब्द प्राया है। पार्जिटर के अनुसंधानों के अनुसार भविष्य पुराण का अस्तित्व बहुत पहले था। यहाँ तक कि छांदोग्य उपनिषद् (२. ३.) में भी पुराण का उल्लेख है। (६) दत्तक ने पाटलिपुत्र में वात्स्यायन से भी पहले वैषिक लिखा था। इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि वह या और कोई वैषिक ई० पू. ३०० से पहले नहीं लिखा गया था। (७) पाणिनि से परिचित होना यह सिद्ध नहीं कर सकता कि कौटिल्य का समय ई० पू० ३०० से बाद का है।