पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३७५

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(३४४) (देखो ऊपर पृ० ४५ का नोट)। साथ ही अर्थशास्त्र में पाए हुए नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात (२. १०.) वाले पाणिनि से पहले के प्रयोगों पर भी (देखो मैक्डोनल कृत History of Sanskrit Literature पृ० २६७.) ध्यान देना चाहिए। इसका अभिप्राय यही है कि पाणिनि के पारिभाषिक शब्द जितने अधिक पतंजलि के समय में और उसके उपरांत प्रचलित हुए थे, उतने स्वयं पाणिनि के समय मे नहीं हुए थे । (८) भविष्य-कथन ती अथर्व वेद के समय में भी प्रचलित था। यह बात सिद्ध की जा चुकी है कि फलित ज्योतिष की उत्पत्ति या प्रारंभ मेसोपोटामिया में हुआ था । यूनानियों और हिंदुओं दोनों ने यह विद्या एक ही मूल या उद्गम से ग्रहण की थी। दो ग्रहों के उल्लेख मात्र से ही काल-क्रम संबंधी कोई दलील नहीं खड़ी की जा सकती। यूनानी फलित ज्योतिष तथा परवर्ती भारतीय साहित्य में जिस रूप में ग्रहों का उल्लेख है, उस रूप में अर्थशास्त्र में उनका उल्लेख नहीं है; और इससे इसी पक्ष की पुष्टि होती है कि अर्थशास्त्र और पहले का बना हुआ है। जैसा कि प्राप्त द्रव्यों (अंक-चिह्नित सिक्कों और पाटलिपुत्र तथा अन्यान्य स्थानों में मिले हुए बरतनी ) से निश्चित रूप से प्रमाणित होता है, जिस देश मे सिकंदर और चंद्रगुप्त के समय से शताब्दियों पूर्व ताँबे के

  • J. B. O. R. S. १६१६. पृ०६६४. इंडियन एटीक्वेरी;

3 १६१८, पृ० ११२.