पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३७६

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> ( ३४५) सिक्के, चॉदी के सिक्के, मिश्र धातुओ के सिक्के, श्वेत धातु या निकल, जो कि पंजाब मे सिकंदर के सामने लाया गया था, कॉसे, लोहे, शीशे आदि के द्रव्य बनते रहे हो, उस देश के लोग धातु-विज्ञान से और विशेषतः ताँबे की चीजे बनाने की विद्या से अवश्य ही परिचित रहे होंगे। अभी हाल मे राय साहब एम० घोष ने पाटलिपुत्र मे मौर्य स्तर मे से ढला हुआ लोहा निकाला है। डा० स्पूनर और राय साहब ने पाटलिपुत्र मे शीशे की ढली हुई ऐसी मोहरे हूँढ़ निकाली हैं, जिन पर मौर्य काल और उससे भी पहले की लिपियों के अक्षर बने हुए हैं (J. B. 0. R S सितंबर, १८२४.)। यहाँ के लोगों को सात धातुओं का पता तो यजुर्वेद के समय में ही था ( वाजसनेयि संहिता, १८. १३. और २३. ३७.)। (८-१०) यह दलील अर्थशास्त्र में दिए हुए उद्धरणों के सिद्धांत के विपरीत है। यदि उससे पहले इस विषय का बहुत कुछ साहित्य तैयार हो चुका था, तो ये उद्धरण बिलकुल स्वाभाविक हैं। यदि सिकंदर से पहले भी इस विषय के ग्रंथ वर्तमान थे, वो कौटिल्य प्रत्येक विज्ञान का आरंभ यूनानी आक्रमण के बाद से नहीं रख सकता था। हमारे विद्वान् अनुसंधानकर्ता ने यह नहीं बतलाया है कि इस प्रकार के विवेचनात्मक ग्रंथों के अस्तित्व के कारण ही यह कैसे कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र का समय बहुत वाद का है और बहुत पहले का नहीं है।