पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३९

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( ८ ) यह वात जानकर और भी आनंद तथा कुतूहल होता है कि मुसलमानों के शासन काल में जिस प्रकार हिंदू धर्मशाख का अध्ययन प्रचलित था, उसी प्रकार हिंदू हिंदू धर्मशास्त्रकारों राजनीति का अध्ययन भी प्रचलित था। के चौदहवीं से अठारहवीं शताब्द तक के पंथ मुझे यह जानकर आनंदयुक्त आश्चर्य हुआ कि चंडेश्वर, मित्र मिश्र और नीलकंठ आदि प्रसिद्ध धर्मशास्त्र निबंधकारों ने इन दिनों में भी हिंदू राज- नीति संबंधी प्रथों की रचना की थी। इनमे से एक ग्रंथ का नाम राजनीतिरत्नाकर है और दूसरे का नाम वीरमित्रोदय राज- नीति है। इसी प्रकार एक मयूख भी है जिसका नाम राज- नीतिमयूख है। अंतिम काल के इन ग्रंथों के महत्व के संबंध में केवल यही कहा जा सकता है कि ये ग्रंथ विलकुल्ल .. काशी के प्रसिद्ध संस्कृतज्ञ स्व. वा. गोविंददास के पुस्तकालय में इस ग्रंथ की एक प्राचीन प्रति है। वीरमिनोदय राजनीति काशी की चाखंभा संस्कृत सीरीज में प्रकाशित हुई है। चंडेश्वर के राजनीतिरना- कर का संपादन विहार और उड़ीसा रिसर्च सोसायटी के लिये मैं (मूल ग्रंथकार) कर रहा हूँ। चंडेश्वर से पहले दो और संग्रहकर्ता हो गए थे जिन्होने हिंदू राज- नीति-संबंधी सिद्धांतों का संग्रह किया था। इनमें से एक तो कल्पतरु का प्रसिद्ध ग्रंथकर्ता लक्ष्मीधर था और दूसरा मामधेनु का ग्रंथकर्ता था। इन प्राचार्यों ने क्रमशः राजनीतिकल्पतरु और राजनीतिकामधेनु की रचना की थी। चंडेश्वर ने अपने ग्रंथ में इन दोनों प्रथों में से उद्धरण दिए हैं।