पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८०

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( ३४६) में ही है। मेगास्थिनीज की मूल पुस्तक के अभाव में हम यह नहीं कह सकते कि वास्तव में उसने क्या कहा था और भारत- वर्ष के किस प्रांत के संबंध में कहा था । (१५) मेगास्थिनीज स्वयं कहता है कि सड़कों पर दूरी जानने के लिये बहियाँ या रजिस्टर रखे रहते थे और पत्थर भी लगे होते थे। जातकों मे ऐसी गोटियों का उल्लेख है जिन पर लेख लिखे रहते थे । मोहरें और अशोक के शिला-लेख भी यह बात प्रमाणित करते हैं कि मौर्य काल में लोग लेखन-कला से परि- चित थे और उसका यथेष्ट व्यवहार करते थे। क्या यह संभव है कि लेखन-कला एकाएक सिकंदर के आने के साथ ही प्रकट हो जाती ? दो ही पीढ़ियों के बाद अशोक ने सारे भारत में अपने शिलालेख खुदवाए थे; (क्या यूनानी लोग उन लेखों को पढ़ते थे और उनका श्राशय भारतवासियों को समझाते थे ?) और उसके पिता बिंदुसार ने यूनानी राजा को पत्र लिखा था। इन सब बातों से यही सिद्ध होता है कि यह कहना बिलकुल निराधार है कि भारतवासी लेखन-कला से परिचित नहीं थे। (१६) मेगास्थिनीज ने लिखा है कि बिक्री की चीजों पर कर लगता था। इसमें अर्थशास्त्र में कही हुई चुंगी और दूसरे सब साधारण कर आ जाते हैं। और फिर मेगास्थिनीज का ग्रंथ भी तो हमारे सामने नहीं है। (१७) यदि मेगास्थिनीज और अर्थशास्त्र की बातों के मिलान से कोई बात प्रमाणित नहीं हो सकती, तो फिर दोनों