पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८१

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( ३५० ) की बातों में मिलान न होने से कैसे कोई बात प्रमाणित हो सकती है? (१५) पाटलिपुत्र का कोई उल्लेख न होने के कारण कोई वात प्रमाणित नहीं होती। इसमें संदेह नहीं कि कौड़ियों, हीरों, रत्नों और मोतियों के लिये दक्षिण का व्यापार-मार्ग बहुत महत्वपूर्ण था। साथ ही अर्थशास्त्र में काशी, नेपाल, कुकुर, लिच्छवि, मल्ल, कांबोज, कुरु, पांचाल, सुराष्ट्र और मद्र आदि का भी उल्लेख है। उसका दृष्टिक्षेत्र प्रधानतः उत्तरी ही था, अर्थात् उसने उत्तर भारत में बैठकर ही सब कुछ लिखा था। बहुत से हस्तलिखित ग्रंथ दक्षिण मे मिले हैं। क्या उन सबके रचयिता (जैसे भास आदि) केवल इसी कारण दक्षिण के मान लिए जायँगे? (१६ ) स्वयं अर्थशास्त्र से यह बात सिद्ध होती है कि वह प्राचीन ग्रंथों के आधार पर लिखा गया है और उसमे सूत्र तथा आप्य दोनों एक ही में मिले हुए हैं। इसलिये प्रत्येक सूत्र, जिसमें स्वयं रचयिता का मूल मत हो, आवश्यक रूप से अपदेश हो गया। जैसा कि फ्लीट ने बतलाया है और प्रत्येक हिंदू जानता है, इस देश में यह प्रथा बहुत प्राचीन काल से वरावर अब तक प्रचलित है कि रचयिता अपने ग्रंथ मे स्वय अपना नाम देता चलता है। विदेशियों को यह बात भले ही ठीक न अँचती हो, पर इस देश के लिये तो यह एक बहुत ही साधारण बात है 1