पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८२

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(३५१ ) (२०) जैसा कि महामहोपाध्याय पं० गणपति शास्त्री . (अर्थशास्त्र की प्रस्तावना) ने बतलाया है, विशालाक्ष और बृहस्पति के उद्धरण साहित्य मे अब तक कही कहीं मिलते हैं। हम इसका एक और प्रमाण देते हैं। वंबई के पं० नाथूराम प्रेमी ने नीतिवाक्यामृत की जो टीका प्रकाशित की है, उसमें तथा ऊपर (पृ. १०) कहे हुए मानव अर्थशास्त्र मे शुक्र ( उष्णस्) और बृहस्पति के उद्धरण मौजूद हैं। इन सब उद्धरणों को देखते हुए कोई कभी यह नहीं कह सकता कि अर्थशास्त्र में जिन आचार्यों का उल्लेख है, वे कल्पित हैं। जोली ने कुछ निराधार विचारो की उपेक्षा करके बहुत ठीक किया है। उदाहरणार्थ उन्होंने और लोगों की भॉति यह नही कहा है कि अर्थशास्त्र की शैली बहुत प्राचीन ढग की नहीं है। अथवा उसके भौगोलिक उल्लेखों से सिद्ध होता है कि उसका रचना काल वहुत बाद का है* | .. अर्थशास्त्र में चीन का उल्लेख है, पर यह कोई आपत्तिजनक बात नहीं है। प्राचीन संस्कृत साहित्य मे दरद अथवा हिमालय के दूसरे प्रदेशों के साथ चीन का प्रायः उल्लेख मिलता है, और उसका अभिप्राय गिल- गित्त की शीन नामक जाति से है जिसका अब तक यही नाम है; और इस जाति के लोग शहतूत के वृक्ष लगाते और रेशम तैयार करते है। देखो Encyclopaedia Brittanica i sita diäafi na År Lingo uistic Survey of India (खंड १०. भाग ४. पृ० ५. नोट) मे सर जार्ज ग्रियर्सन ने इनका जो पता लगाया है। ["पर मैं यह कहूंगा कि इसमे (मनु १०. ४४.) तथा इस प्रकार के और वाक्यो में उस बड़ी शीन जाति का उल्लेख है जो गिलगित्त मे और उसके आसपास अब तक बसती है।"]