पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८४

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(३५३) (१) उसमें 'युक्त' शब्द आया है जिसका प्रचार केवल मौर्य काल में ही था; और प्रजातंत्रों या गणों के संबंध की नीति स्थिर करते समय उसमें जो भौगोलिक दृष्टिकोण रखा गया है, उसका संबंध भी केवल मौर्य काल से ही हो सकता है। ई० पू० पहली शताब्दी और ई० ५० पहली या दूसरी शताब्दी में कोई ऐसा "राजा" नहीं था ( जिसके लिये कौटिल्य ने संघ- वृत्त-नीतिवाला प्रकरण लिखा है । जिसके अधिकार में विदेह से अफगानिस्तान तक का प्रदेश रहा हो । (२) अब 'युग' शब्द लीजिए जिसका अर्थ पाँच वर्ष है (२. २०.)। ज्योतिष वेदांग में यह शब्द इसी अर्थ में आया है 1 उसके पहले की शताब्दियों के साहित्य मे, जिसमें मानव धर्म- शास्त्र भी सम्मिलित है, यह शब्द इस अर्थ मे नहीं आया है। (३) अब प्रमाण रूप में वह वाक्य लीजिए जिसमें कहा गया है कि वर्षा का आरंभ श्रावण से होता था (श्रावण प्रोष्ठ- पदश्च वर्षा) अर्थात् उसके रचयिता के समय में वर्षा ऋतु का प्रारंभ श्रावण मास से होता था, आजकल की तरह आषाढ़ के मध्य से नहीं होता था। अब नियम यह है कि प्रत्येक शताब्दी में ऋतु प्रायः डेढ़. दिन पीछे हटती है- "इस अंतर के कारण सिकंदर या अशोक के समय में वर्षा का प्रारंभ प्राजकल की अपेक्षा ठीक एक महीने पहले हुआ करता होगा

कनिंघम कृत Indian Eras पृ० ३.

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