पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८५

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(३५४) (४) इसके अतिरिक्त अर्थशास्त्र में उसी स्थान पर लिखा हुआ है-'आषाढ़े मासि नष्टच्छायो मध्याह्नो भवतिः। यह बात केवल उत्तर पाटलिपुत्र में ही बैठकर लिखी जा सकती है, दक्षिण में बैठकर नहीं लिखी जा सकती। (५) राजनीतिक दृष्टि से तो पता चलता ही है कि ग्रंथ की रचना मौर्य काल में हुई थी। इसके अतिरिक्त यह मानने के लिये कुछ और भी आधार हैं कि यह ग्रंथ परवर्ती मौर्य काल में नहीं लिखा जा सकता था। अर्थशास्त्र (३. २०.)* में शाक्य और आजीवक बहुत निम्न कोटि के बतलाए गए हैं और उनकी गणना शूद्र संन्यासियों या त्यागियों के वर्ग में की गई है। पर उस समय उनकी स्थिति ऐसी गिरी हुई नहीं हो सकती थी। अशोक या उसके उत्तराधिकारियों के शासन-काल में यह कभी संभव नहीं था कि ऐसे नियम या कानून बनाए जाते जो उन्हें समाज की दृष्टि में गिरानेवाले होते । पतंजलि ने यह कहकर मौर्यों की दिल्लगी उड़ाई है कि वे धन (स्वर्ण) के बड़े लोलुप या उपासक थे। अर्थशास्त्र से भी इस कथन का समर्थन होता है, क्योंकि उसमें लिखा है कि मौर्य राजा लोग धन-प्राप्ति के लिये अर्चा या पूजा किया करते थे। पर अशोक तो ऐसा काम कभी कर ही नहीं सकता था, क्योंकि

  • म्यूनिक की हस्तलिखित प्रति; शाम शास्त्री का अनुवाद; पृ०

२५१. नोट। | इंडियन एंटीक्वेरी, १६१८. पृ०५१.